जानें भगवान गणेश प्रथम पूज्य क्यों !

Book Pandit for Puja

Hindi

जानें भगवान गणेश प्रथम पूज्य क्यों !

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पूर्वोक्त विधि के अनुसार गणपति की पूजा करके विधि पूर्वक नवग्रह पूजन करना  चाहिए जिसमे समस्त जिसमे समस्त कार्यों का फल प्राप्त होता है तथा लछमी की भी प्राप्ति होती है कोई ऐसा कार्य नहीं कोई ऐसा कार्य नहीं जो गणपति की पूजा के बिना प्रारम्भ किया जाता हो इस अटल नियम पालन की प्रणाली के प्रताप से संस्कृत साहित्य में तो श्री गणेश शब्द की शक्ति ही आरामभार्त में अरुण हो गई है हिंदी भाषा में भी न केवल गणेश पूजन में निष्ठारखने वाले आस्तिक सज्जन ही अपितु तुन्दिल पेट और हाथी की नाक कहकर कहकहे लगाने वाले अपटूडेट महाशय भी श्री गणेश पद को प्रारम्भ करता सूचक मुहावरा स्वीकार करते हैं और बढ़े धड़ल्ले के साथ किसी भी आंदोलन प्रशंसात्मक बखान करते हुए यही उचारते हैं की जबसे इस आंदोलन का श्री गणेश हुआ है तब से मृतपाय हिन्दू जाती में पुनः जीवन आ गया हैं इत्यादि कहना ना होगा की श्री गणेश शब्द का आरंभिक क्रिया के साथ कुछ ना कुछ अनिवार्य एंवम घनिष्ट सम्भन्ध अवस्य हैं जैसे की ” अस्मत्पाददयामार्थो बोधव्य इत्याकारक ईशवरसंकेतए: शक्ति : ” के अनुसार यह शब्द प्राकृतिक रीति से प्रारम्भ अर्थ में आरूढ़ हो गया हैं. गणेश शब्द के विघ्नहन’ विनायक’ ‘ गजास्य’ ‘ ईप्सितदाता’ और ‘विघ्न- शमन’ आदि अनेक पर्याय प्रसिद्धि हैं | सांस्कृत भारती विश्वभर की प्रचलित भाषाओ की जनंनी हैं तथा समस्त भाषाओ में संस्कृत भाषा के शब्द ही अपभ्रष्ट होकर समाविष्ट हुए हैं | यह नग्न सत्य प्राय: सभी अनुसंधायक स्वीकार करते हैं तदनुसार अन्य भाषाओ में भी आराम्भार्थक जितने प्रसिद्ध शब्द हैं. वे सब्द  प्राय: ‘गणेश” शब्द के पर्यायों में से ही किसी एक के अपभ्रंश जान पड़ते हैं| जैसे इंग्लिश भाषा का प्राम्भार्थक बेगिनिंग शब्द गणेश शब्द के अन्यतम पर्याय ‘ विगनहन’ का अपभ्रंश प्रतीत होता हैं. इब्रानी, पर्सियन और उर्दू भाषा के ‘ आगाज़’ ‘इप्तदा’ ‘ विशमिल्ला’ आदि शब्द भी हमारे ‘ गजास्य’ ‘ ईप्सित दाता’ ‘विघ्न-शमन’ शब्दों के ही अपभ्रंश हैं | इस तरह विश्व साहित्य पर व्यापक दृष्टि डालने से यही परिणाम निकलता हैं की शब्द शास्त्र की परंपरा के विचार से गणेश तत्त्व का आरंभिक क्रिया के साथ अनादिकाल से अविछिन्न सम्भन्ध  चला जाता आता हैं.

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English

Why Lord Ganesha is the first worshiper!

According to the aforesaid method, after worshiping Ganpati, it should be done before the Navagha Pooja which includes all the functions of the work and also the receipt of Laxmi.

There is no such work, no such work which is initiated without the worship of Ganpati. The power of Shri Ganesh word has become Arun in Sanskrit literature with the glory of the system of adherence to this Atal Rule.

Not only in the Hindi language, the Upanishad gentleman who insists in Ganesh Poojan, but the Upatudate mantra, who is called Nand of Tandil Pat and elephant, also accepts the idiom that begins with Shri Ganesh Padga, and any agitation with acclaimed praises is commendable. This is the message that since the movement has been Shri Ganesha since then, there has been life again in the dead, Hindu castes.

It will not be said that, with the initial verb of Sri Ganesh, there are some compulsory and unambiguous related affirmations such as “According to Ishwar Pradhanamathera Bodhiavyekatika Ishwar Sanketya: Shakti:” this word has been invented by means of natural origin. There are much popular fame, such as ‘Vinayak’, ‘Gazajee’, ‘Episcrider’ and ‘Vigun-Shaman’, the breakdown of the word Ganesh. Cultural Bharti is the world’s most popular languages, and in all languages, the words of Sanskrit language are indistinguishable.

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This naked truth often accepts all the relevant, according to other well-known words as well as in other languages. The words ‘Ganesha’ are often considered to be the disadvantages of one of the synonyms of the word. Like the word ‘Beginning’ of the English language, the word ‘Ganapati’ seems to be an abnormality of ‘Vignan’.

The words ‘Aajaz’, ‘Imdada’, ‘Vashmilah’, Hebrew, Persian, and Urdu are also the words of our ‘Gazajya’ ‘Ipseed Data’ ‘Vigun-Shaman’ words. In this way, by taking a comprehensive view of world literature, the result is that with the introduction of the tradition of the word script, the initial function of Ganesha principle comes from time immemorial.

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