जानें क्यों लगता है कुम्भ का मेला प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में?अन्य स्थानों पर क्यों नहीं

Pandit for puja in Noida

जानें क्यों लगता है कुम्भ का मेला प्रयाग, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन में?अन्य स्थानों पर क्यों नहीं?

वैसे तो सामान्य तौर पर प्रत्येक ३ वर्ष के अंतराल पर कही न कही कुम्भ का ग्रहयोग अवश्य बनता है ६ वर्ष में पड़ने वाले पर्व को “अर्ध-कुम्भी’ कहते है| कुम्भ पर्व का ग्रहयोग १२ में बनता है| इसमें स्नान और दान का बहुत अधिक महत्व है भारतवर्ष के कोने – कोने से श्रद्धालु हिन्दू कुम्भ स्नान करने आते है विदेशो में प्रवास कर रहे हिन्दू श्रद्धालु भी कुम्भ पर्व स्नान करने आते है| कुम्भ पर्व के स्नान के महत्व का वर्णन वेदो में भी मिलता है|

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अर्थवेद के अनुसार कुम्भ पर्व के काल को सर्वोतकृष्ट बैकुंठ के तुल्य पवित्र कहते है| धर्मोचायो अवं विद्द्वानों की गरणा के अनुसार जब गुरु वृषभ राशि पर हो, सूर्य तथा चन्द्रा मकर राशि पर हो तथा अमावस्या हो- जब ये सभी योग बनते है तब उस समय ‘प्रयाग-कुम्भ ‘ का पर्व मनाया जाता है अथार्त तब प्रयाग का कुम्भ लगता है| जब सूर्य मेष राशि पर और गुरु कुम्भ राशि पर हो तो उस समय हरिद्धार का कुम्भ लगता है| जब सूर्य कर्क राशि पर तो तथा चंद्र भी कर्क राशि पर हो और गुरु सिंह राशि पर विराजमान हो उस समय नासिक कुम्भ का योग बनता है अथार्त तब नासिक का कुम्भ लगता है और जब सूर्य तुला राशि पर हो तथा गुरु वृशिचक राशि पर हो उज्जैन का कुम्भ लगता है |

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प्रत्येक १२ वर्ष के अंतराल पर कुम्भ पर्व का योग उपस्थित होता है | पोराणिक कथा के अनुसार देवता और दानवो ने मिलकर जब समुद्र मंथन से चौदह रत्न निकले | उन चौदह रत्नो में से सबसे मूलयवान रत्न अमृत था | अमृत प्राप्ति के लिए ही देवता और दैत्यो ने मंथन किया था | जब अमृत कलश लिए हुए धन्वंतरि प्रकट हुए तो अमृत पाने के लिए देवता और दैत्यो में छीना झपटी होने लगी | अमृत कलश को देवता लेकर भागने लगे तो उस कलश को चार स्थलों पर रखा गया | अमृत कलश से अमृत की कुछ बुँदे इन स्थानों पर छलक कर गिरी | ये चारो स्थान प्रयाग, हरिद्धार, नासिक, और उज्जैन है |बाद में मोहिनी रूप धारी श्री विष्णु जी प्रकट हुए और छल से सारा अमृत देवताओं को पीला दिया |

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