जाने क्यों देवर्षि नारद जी को बनना पढ़ा स्त्री

Panditji in Gulshan Botnia

एक बार देवर्षि नारद भगवान श्री हरी विष्णु के दर्शन करने के उददेश्य से उनके धाम गए उस समय लक्ष्मी जी उनके चरण दवा रहीं थीं |नारद जी को देखकर वे वहाँ से हट गईं तब नारद जी श्री विष्णु जी से कहा -हे प्रभो ! में कोई नीच या नराधम नहीं हूँ | में तपस्वी हूँ | इन्द्रियां पूर्ण रूप से मेरे वश में रहती हैं | माया का मुझपे कोई प्रभाव नहीं होता | ये बातें नारद जी ने अभिमानपूर्वक कहीं तब तब श्री हरी विष्णु जी हंसकर बोले – हे देवर्षि ! स्त्री को चाहिए पति के सिवा कभी किसी दूसरे पुरुष के सामने ऐसा व्यवहार न करें और जहाँ तक माया की बात है तो माया उन योगियों के लिए भी अजेय है जिन्होंने अपनी इन्द्रयों को अपने वश में कर लिया है | तब नारद जी ने कहा -हे प्रभो ! में माया का स्वरूप देखना चाहता हूँ |

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नारद जी के वचनों को सुनकर श्री हरी ने अपने प्रिये वाहन गरुण को याद किया | गरुण जी तुरंत उपस्थित हुए | गरुण पर श्री विष्णु जी के साथ नारद जी सवार हुए और तब  भगवान का संकेत पाकर गरुण जी उड़ चले | सुन्दर नदियां, तालाब पर्वत आदि देखते हुए दोनों कान्य कुब्ज नगर पहुंचे | वाहन एक दिव्य सरोवर दिखाई पढ़ा | वहाँ विष्णु जी का संकेत पाकर गरुण जी निचे उतरे तब श्री विष्णु जी ने नारद जी से कहा – हे ऋषिवर ! पहले तुम सरोवर के स्वच्छ जल में इस्नान कर लो फिर आगे चलते हैं | भगवान विष्णु के कहने पर नारद जी ने ज्यों ही सरोवर तालाब में डुबकी लगाई उनकी पुरुष आकृतिक गायब हो गई | वे सुन्दर स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गए | अपने पहले वाले रूप की याद भी न रही |

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भगवान विष्णु भी याद न रहे | सुन्दर स्त्री रूप लेकर वे तालाब से बहार निकले उसी समय राजा तालध्वज वहाँ आ गए | राजा तालध्वहज ने उनका नाम सौभाग्य सुंदरी रख दिया और उनसे विवाह कर लिया | फिर धीरे-धीरे उनसे बारह पुत्रों की उत्पत्ति हुई | उनके लालन पालन में सौभाग्या सुंदरी का समय बीतने लगा वे पुत्र बड़े हुए | उनकी भी बहुए आ गईं | उनके बच्चे हुए | एक बार युद्ध में सौभाग्य सुंदरी के बच्चे और पोते मारे गए \ तब सौभाग्य सुंदरी को बहुत दुःख हुआ और वह रोने लगी उसी समय भगवान विष्णु बूढ़ेब्राम्हण का भेष बनाकर आये और बोले – पुत्र एवं पौत्र के मोह में वशीभूत होकर क्यों इस तरह क्यों विलाप कर रही हो अपने विचार से सोचो कोण किसका पिता है, कौन किसका पुत्र है ? यह दुनिया नस्वर है अतःरोना धोना छोड़कर शास्त्र अनुसार मृतकों को तीर्थ आदि स्नान करके तिलांजली दो / तब ब्राम्हण के कहने पर स्त्री रूप नारदजी ने जाकर उसी सरोवर में स्नान किया \ स्नान करते ही उनका स्वरूप बदल गया | बहार निकले तो उनकी वीणा एक तरफ रखी हुई थी | भगवान विष्णु अपने गरुण के साथ उपस्थित थे | तब वे अपने मन में विचार करने लगे की अभी में स्त्री था तो पुरुष कैसे बन गया |

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अभी कुछ समय पहले पुत्र और पौत्रों की मृत्यु से दुखी था | आखिर यह सब क्या है ? भगवान विष्णु जी उनके मन की बात जान गए और हस्ते हुए बोले हे देवर्षि नारद ! यह माया का एक स्वरूप है | माया अनेक रूप में प्राणी को भटकाती है, माया का पार पाना असंभव है | माया के प्रभाव से ही तुम पुरुष से स्त्री हुए और बारह पुत्रों को जन्म दिया | देवर्षि नारद जी ने कहा-हे प्रभो ! सच मुच् माया बढ़ी विचित्र है

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