रुद्राभिषेक पाठ और उसके भेद – Book Panditji for Rudrabhishek Puja
Book Panditji for Rudrabhishek Puja
हमारे शास्त्रों और पुरानो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसे यग्यों से भी प्राप्त नही होता !
स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते है । संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है ।
लेकिन मुख्यरूप से पांच ही प्रकार है !
रूपक या षड पाठ – रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ कहा गया है।
शिव कल्प सूक्त- प्रथम हृदय रूपी अंग है
पुरुष सूक्त -द्वितीय सर रूपी अंग है ।
उत्तरनारायण सूक्त- शिखा है।
अप्रतिरथ सूक्त- कवचरूप चतुर्थ अंग है ।
मैत्सुक्त- नेत्र रूप पंचम अंग कहा गया है ।
शतरुद्रिय- अस्तरूप षष्ठ अंग कहा गया है।
इस प्रकार – सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी के दस अध्यायों का षडडंग रूपक पाठ कहलाता है षडंग पाठ में विशेष बात है की इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवे अध्याय की आवृति नही होती है कर्मकाण्डी भाषा मे इसे ही नमक-चमक से अभिषेक करना कहा जाता है।
(1) रुद्री या एकादशिनी – रुद्राध्याय की ग्यारह आवृति को रुद्री या एकादिशिनी कहते है रुद्रो की संख्या ग्यारह होने के कारण ग्यारह अनुवाद में विभक्त किया गया है।
(2) लघुरुद्र- एकादशिनी रुद्री की ग्यारह अव्रितियों के पाठ को लघुरुद्र पाठ कहा गया है।
(3)यह लघु रूद्र अनुष्ठान एक दिन में ग्यारह ब्राह्मणों का वरण करके एक साथ संपन्न किया जा सकता है। तथा एक ब्राह्मण द्वारा अथवा स्वयं ग्यारह दिनों तक एक एकादशिनी पाठ नित्य करने पर भी लघु रूद्र संपन्न होहै है।
(4) महारुद्र — लघु रूद्र की ग्यारह आवृति अर्थात एकादशिनी रुद्री की 121 आवृति पाठ होने पर महारुद्र अनुष्ठान होता है । यह पाठ ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा 11 दिन तक कराया जाता है।
अतिरुद्र – महारुद्र की 11 आवृति अर्थात एकादिशिनी रुद्री की 1331 आवृति पाठ होने से अतिरुद्र अनुष्ठान संपन्न होता है ये अनुष्ठात्मक , अभिषेकात्मक और हवनात्मक , तीनो प्रकार से किये जा सकते है शास्त्रों में इन अनुष्ठानो का अत्यधिक फल है व तीनो का फल समान है।
रुद्राष्टाध्यायी के प्रत्येक अध्याय मेँ – प्रथमाध्याय का प्रथम मन्त्र “गणानां त्वा गणपति गुम हवामहे ” बहुत ही प्रसिद्ध है । यह मन्त्र ब्रह्मणस्पति के लिए भी प्रयुक्त होता है।
द्वितीय एवं तृतीय मन्त्र मे गायत्री आदि वैदिक छन्दोँ तथा छन्दो में प्रयुक्त चरणो का उल्लेख है । पाँचवे मन्त्र “यज्जाग्रतो से सुषारथि” पर्यन्त का मन्त्रसमूह शिवसंकल्पसूक्त कहलाता है। इन लमन्त्रोँ का देवता “मन”है इन मन्त्रो में मन की विशेषताएँ वर्णित हैँ। परम्परानुसार यह अध्याय गणेश जी का है।
द्वितीयाध्याय मे सहस्रशीर्षा पुरुषः से यज्ञेन यज्ञमय तक 16 मन्त्र पुरुषसूक्त से है, इनके नारायण ऋषि एवं विराट पुरुष देवता है। 17 वे मन्त्र अद्भ्यः सम्भृतः से श्रीश्च ते लक्ष्मीश्च ये छः मन्त्र उत्तरनारायणसूक्त रुप मे प्रसिद्ध है।
द्वितीयाध्याय भगवान विष्णु का माना गया है।
तृतीयाध्याय के देवता देवराज इन्द्र है तथा अप्रतिरथ सूक्त के रुप मे प्रसिद्ध है। कुछ विद्वान आशुः शिशानः से अमीषाज्चित्तम् पर्यन्त द्वादश मन्त्रो को स्वीकारते हैं तो कुछ विद्वान अवसृष्टा से मर्माणि ते पर्यन्त 5 मन्त्रो का भी समावेश करते है। इन मन्त्रो के ऋषि अप्रतिरथ है। इन मन्त्रो द्वारा इन्द्र की उपासना द्वारा शत्रुओ स्पर्शाधको का नाश होता है।
प्रथम मन्त्र का अर्थ देखेँ त्वरा से गति करके शत्रुओ का नाश करने वाला, भयंकर वृषभ की तरह, सामना करने वाले प्राणियोँ को क्षुब्ध करके नाश करने वाला। मेघ की तरह गर्जना करने वाला। शत्रुओं का आवाहन करने वाला, अति सावधान, अद्वितीय वीर, एकाकी पराक्रमी, देवराज इन्द्र शतशः सेनाओ पर विजय प्राप्त करता है।
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चतुर्थाध्याय मे सप्तदश मन्त्र है जो मैत्रसूक्त के रुप मे प्रसिद्ध है। इन मन्त्रो मे भगवान सूर्य की स्तुति है ” ऊँ आकृष्णेन रजसा ” मे भुवनभास्कर का मनोरम वर्णन है। यह अध्याय सूर्यनारायण का है ।
पंचमाध्याय मे 66 मन्त्र है यह अध्याय प्रधान है, इसे शतरुद्रिय कहते है।
“शतसंख्यात रुद्रदेवता अस्येति शतरुद्रियम्। इन मन्त्रो मे रुद्र के शतशः रुप वर्णित है। कैवल्योपनिषद मे कहा गया है कि शतरुद्रिय का अध्ययन से मनुष्य अनेक पातको से मुक्त होकर पवित्र होता है। इसके देवता महारुद्र शिव है।
षष्ठाध्याय को महच्छिर के रुप मेँ माना जाता है। प्रथम मन्त्र मे सोम देवता का वर्णन है। प्रसिद्ध महामृत्युञ्जय मन्त्र “ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे” इसी अध्याय मे है। इसके देवता चन्द्रदेव है।
सप्तमाध्याय को जटा कहा जाता है । उग्रश्चभीमश्च मन्त्र मे मरुत् देवता का वर्णन है। इसके देवता वायुदेव है।
अष्टमाध्याय को चमकाध्याय कहा जाता है । इसमे 29 मन्त्र है। प्रत्येक मन्त्र मे “च “कार एवं “मे” का बाहुल्य होने से कदाचित चमकाध्याय अभिधान रखा गया है । इसके ऋषि “देव”स्वयं है तथा देवता अग्नि है। प्रत्येक मन्त्र के अन्त मे यज्ञेन कल्पन्ताम् पद आता है।
रुद्री के उपसंहार मे “ऋचं वाचं प्रपद्ये ” इत्यादि 24 मन्त्र शान्तयाध्याय के रुप मे एवं “स्वस्ति न इन्द्रो ” इत्यादि 12 मन्त्र स्वस्ति प्रार्थना के रुप मे प्रसिद्ध है।
रुद्राभिषेक प्रयुक्त होने वाले प्रशस्त द्रव्य व उनका फल –
- जलसे रुद्राभिषेक — समृद्धि व धनलाभ होती है
- कुशोदक जल से — समस्त प्रकार की व्याधि की शांति
3. दही से अभिषेक –कृषि व पशुलाभ की प्राप्ति होती है
4. गन्ने के रस — लक्ष्मी की प्राप्ति
5. मधु (शहद)– धन प्राप्ति व यक्ष्मारोग (तपेदिक)से मुक्ति।
6. घृत से अभिषेक व तीर्थ जल से — मोक्ष की प्राप्ति
7. दूध से अभिषेक — प्रमेह व अन्य रोग के विनाश व-पुत्र की प्राप्ति
8. सरसों के तेल से अभिषेक करने से शत्रु का विनाश होता है।यह अभिषेक न्यायालय में विवाद को दूर करते है।
9.शक्कर मिले जल से पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है ।
10. इतर मिले जल से अभिषेक करने से शारीर की बीमारी नष्ट होती है ।
11. दूध में मिले काले तिल से अभिषेक करने से असाध्य रोग व शत्रु पर विजय प्राप्त होती है ।
12.समस्त प्रकार के प्रकृतिक रसो से भीअभिषेक हो सकता है और उसका शुभ फल प्राप्त होता है ।
सार –उप्प्युक्त द्रव्यों से महालिंग का अभिषेक पर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होकर भक्तो की तदन्तर कामनाओं का पूर्ति करते है ।
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Rudrabhishek text and its distinction – Book Panditji for Rudrabhishek Puja
There are many types of worship in our scriptures and Puranas, but when we consecrate Lord Mahadev as Shiva Ling, then such a virtue is not attained even with such sacrifices as Ashwamedh!
Self-creator Brahma also said that when we do anointing, then Mahadev himself begins to accept that anointing himself. There is no such thing in the world, no splendor, no happiness, no such Vaastu or substance which we can not get from the anointed! However, Abhishek has been told in many ways.
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But the main thing is only five!
(1) Metaphor or Shadow Lesson – Six parts of Rudra are said to have been described as the sixteenth chapter text of the chant.
Shiva Kalpak Sukta – is the first heart-shaped organ
Male Sukta – is the second aspect of the body.
Uttaranarayan is the Sukta-Shicha.
Irrevocable Sutta-Armor is the fourth organ.
Matsuet- The eye form is said to be the fifth organ.
Ostrich-is called the sixth organ.
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In this way – Shudding text of the ten chapters of the entire Rudrashtadyani is called the text. It is a special thing in the chanting lesson that there is no recurrence of Chapter 5 with Chapter 8. In the ritual language it is said to be anointed with salt-glow.
(2) (1) Rudri or Ekadashi – Eleventh frequency of Rudradaya is called Rudri or Akadishini, because the number of Rudro is eleven is divided into eleven translations.
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(2) The text of the eleven saints of Ekadashini Rudri, is short-lived.
(3) This small Rudra Ritual can be accomplished simultaneously by applying eleven Brahmins in one day. And by a Brahmin or by itself eleven consecutive eleven days, a small Rudra is accomplished even if it is done daily.
(4) Maharrudra – Mahurudra on the recitation of the eleven-fold of eleven frequency of small Rudra
(5) Rituals occur. This lesson is made by eleven Brahmins for 11 days.
(6) Ausuprudra – The 11th frequency of Maharudra, ie 1331 recurring text of Ekadishini Rudri, is performed by the superstitious rituals.
Rituals, anointable and whimsical, can be done in all three ways, these rituals are highly fruitful in the scriptures, and the result of all three is the same.
In each chapter of Rudrhatadhyayi, the first mantra of “Prathmadhyay”, “Gananan Tawa Ganapati Gum Hinmayh” is very famous. This mantra is also used for Brahmanship.
In the second and third mantras, Gayatri etc. are mentioned in the Vedic chandon and Chanda. The fifth mantra is called ‘Shivsankalp’ from the Yajjagrato festival. The God of these laments is the “mind” in these mantras, the attributes of the mind are described. Traditionally, this chapter is of Ganesha.
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There are 16 mantras from the male sutras, from the Sahasrishna male to the yagyaan yagya, in the second phase, the Narayana sage and the Virat is the male deity. 17th Mantra Adbhya: Sambhrit: From Shree Shree Lakshmishi, these six mantras are famous as Uttaranarayanasukta.
The second chapter is considered as Lord Vishnu.
Devithas Indra is the Goddess of the Trithyadhayya and it is famous as the formless Sukta. Some scholars accept Ashshur Shishan from Dashash Mantro till Amishajkshittam, and some scholars also include 5 montoes from Lord Shiva till Lord Vishnu. The sage of these mantras is unresponsive. By the worship of Indra, the destruction of enemy tangadaksa by the worship of Indra.
See the meaning of the first mantra, by hurrying the speed, destroying enemies, like a terrible Taurus, destroying and destroying the life-giving forces. Roar like a cloud Invincible enemies, very careful, unique heroic, lone mighty, Devraj Indra conquers the armies.
In Chaturthyaya, there is the Saptadash Mantra, which is famous as the Maitrasukta. In these monasteries, Lord Sun is the praise of Lord Vishnavashkar in “Oom Akrashanan Rajas”. This chapter is of Suryanarayana.
In Panchamadhiya, there are 66 mantras, this chapter is pramukh, it is called Rasraudriya.
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It is said in the cavalipanishad that the man is purified from many sins, and his god Shiva is Shiva.
Shethadhyaya is considered as a mascara. In the first mantra, there is a description of Som Devata. The famous Mahamrityunjaya Mantra “Oh Trimbak Yajamheh” is in this chapter. It is the god Chandra.
Saptamadhyaya is called Jata. Urgadhichi Mantra is described as a Merut deity. Its god is Vayudev.
Ashtamadhyay is called Shaktadaya. It has 29 mantras. Due to the abundance of “f” car and “m” in each mantra, there is probably a powerful chapter. Its sage is “God” and God is a fire. At the end of each mantra comes the post of Yagnen Kalpantam.
In the epilogue of Rudri, “Ritchya Vachan Pratyadya” etc. 24 Mantra Shantyadhayya and “Swasti na Indra” etc. 12 Mantras are famous as Swasti Prayer.
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Pud dystrophy and their fruits used in Rudra Abhishek –
- Jalsa Rudrabhishek – Prosperity and Riches
- With Kushodak Water – Peace of all kinds of tragedy
- Abhishek from Yogurt – Growth and animal husbandry
- Sugarcane juice – attainment of Lakshmi
- Honey (honey) – Freedom from money acquisition and tuberculosis (tuberculosis).
- From the blossom of Abhishek and pilgrimage water – the attainment of salvation
- Anointing with milk – the death of the son and son of gonorrhea and other diseases
- Anointing with mustard oil is the destruction of the enemy. This Abhishek removes the dispute in the court.
- Household receipts are obtained by drinking water.
- Anointing with other received water destroys the body’s disease.
- Anointing with black sesame mixed in milk leads to incurable disease and victory over the enemy.
- There can also be anointing from all kinds of natural roses and its auspicious results are obtained.
Abstract – Lord Shiva is very pleased to fill the devoted wishes of the devotees on the anointing of Mahalinga from the recipes.
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