जानें नवग्रह पूजन क्यों किया जाता है – Book Panditji for Griha Pravesh
सनातनधर्मी प्रत्येक शुभाशुभ कर्म के प्रारम्भ में नवग्रह पूजन अवश्य करता है , यह क्यों ?
योगी याज्ञवल्क्य ने अपनी स्मृति में मन्त्र विनियोग पूर्वक ग्रह शान्ति प्रकरण लिखा है , यथा –
श्रीकामः शांतिकमो वा ग्रहयज्ञम समाचरेत।
अर्थात – श्री ओर शांति की कामना करने वाले मनुष्य को ग्रह यज्ञ करना चाहिए ।
हम पीछे एंड पिंड सिद्धान्त में ओर महूर्त विज्ञान प्रकरण में भी यह सिद्ध कर आये हैं कि हमारा यह मानव पिंड तत्तद देवताओं के दान से बनी एक पंचायती धर्मशाला के समान है।जैसे कोई संस्था धर्मशाला के निमित्त अपील करे तो सभी उदार दानी अपनी योग्यताअनुसार दान देते हैं एक ने भूमि दी तो दूसरे ने ईंट पत्थर ,तीसरे ने लोहा लक्कड़ तो चौथे ने चुना सीमेंट इस तरह उक्त दानियों के दान से थोड़े दिन में सर्वांगपूर्ण धर्मशाला बनके तैयार हो जाती है।
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यदि कदाचित संस्था का मंत्री दानियों का धन्यवाद न करे तो दानी जो कुछ दे चुके हैं -वह बापिस छीनने से तो रहे परन्तु उक्त संस्था के संचालकों को कृतघ्न अवश्य समझ जायगा क्योंकि दान मांगने के समय तो ये लोग टोली बनाकर द्वार द्वार घूमते हुए प्रत्येक दानी को भवान सोमः भवान सूर्य: करते थे परंतु अब अंत मे धन्यबाद देते भी न बना यह ठीक है कि धन्यबाद से पेट नही भरता परन्तु हमने स्वेम बहुत से उत्सवों में यह कांड देखे हैं कि यदि मंत्री जी अमुक व्यक्ति का धन्यबाद करना भूल गए हैं तो महाराज! अमुक व्यक्ति अप्रसन्नता प्रकट करने के लिए तत्त्काल सभा इस्थान छोड़ कर नो दो ग्यारह हो गए ,पीछे मालूम पढ़ने पर बढ़ी बढ़ी छमा मांगने पर भी सीधे न हुए।
हमारे इस पिंड के निर्माण में भी सूर्यादि नवग्रहों का प्रधान हाथ रहा है। मानव पिंड में सूर्य ने आत्मा फुकी,चाँद ने मन दिया मंगल ने रक्त का संचार किया,बुध ने कल्पना शक्ति दी, बृहस्पति ने ज्ञान प्रदान किया, शुक्र ने बीर्य ओर शनि महाराज ने शुख दुख की अनुभूति दी। इस प्रकार धर्मशाला-रूप हमारा यह शरीर इनि महानुभावों की कृपा का फल है सो उक्त धर्मशाला का जब जब भी उत्सव होता है ,
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अर्थार्त- नींव ढालने के समय = गर्वधान से लेकर पुनर निर्माण =अंत्येष्टि संस्कार पर्यन्त जब जब भी कभी अवसर आता है तब तब उक्त सभी दाताओं के नाम लेकर -सूर्याय नमः, चन्दमसे नमः,भौमाय नमः,ॐ बुद्धाय नमः,ॐ बृहस्पतये नमः,ॐ शुक्राय नमः,ॐ शनीचराये नमः, कहते हुए सबका धन्यबाद किया जाता है जो महाशय उक्त दाताओं से दान मांगने के समय तो बढ़ी बढ़ी चापलूसी से पेश आते है परंतु धन्यबाद करते समय सेम भी मूर्ख बन जाते हैं और उल्टा दूसरे लोगों को सन्मार्ग से परिभष्ट करके अपने सदृश कृतघ्न अहसान फरामोश बनाना चाहते हैं -वे निशनदेह ईश्वर के कोप भाजन बनते हैं,।
Know why Navagraha is worshiped.
Sanatan Swami does the Navagraha Puja in the beginning of every good deed, why this?
Yogi Yagnavalkya has written planetary conspiracy episode in his memory, namely, Srikam: Shantikamu or Paryanya Samachar SamacharatThat is, the person who desires Mr. Shree and peace should sacrifice the planet. We have also proved that we have a human body that is like a Panchayati Dharamsala made of donations of gods and goddesses.
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In the same way, if an institution appeals for the purpose of Dharamsala, then all liberal donors donate according to their qualifications. Give it One gave the land, the other made a brick stone, the third iron cast iron, the fourth cement picked up, and thus the donation of the said donors is ready to be completed by the all-round hospice.
If the minister of the organization does not thank the donors, whatever the donor has given it – he would have stayed away from the father, but the operators of the said institution must be considered ungrateful, because at the time of demanding the donations, these people, while making the donations, To bhavan soma: bhawan sun: used to But now it is not good to give a blessing in the end.
It is fine that the stomach does not fill with blessed, but we have seen this scandal in many festivals that if the minister has forgotten to bless such a person, then Maharaj!
To express such dissatisfaction, the people left the place immediately and turned into two eleven, Behind the reading, I did not get straight on even after asking for increased shade. Surya is also the head of the Navagrahas in our creation of this body.
In the human body, the soul fainted, the moon gave the mind; Mars transmitted the blood, Mercury gave the imagination power, Jupiter gave knowledge, Venus gave the sense of auspicious misery to the beary and Saturn Maharaj.
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In this way, our body is a result of the grace of the noble cause, so whenever the festival is celebrated
Meaning- At the time of establishing the foundation = from capital to recurring construction = whenever there is a chance, whenever the opportunity comes, then by taking the names of all the donors mentioned above – Surya Namah, Chandamsee Namah, Bhumay Namah, Buddha Namah, Bukhtatye Namah, Shukrai Namah, Shanicharya Namah, everyone is blessed with saying The monsieur said to the donors with the help of the said donors, they grew up with increased grace, but while thanking, the beans also become stupid, and in contrast, they want to create their own ungrateful egoism by converting others to the road – Vegetables are formed.
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