श्राद्ध के सम्बन्ध में कुछ मान्यताएं-Book Panditji for Pitru Paksha Shraddh
Book Panditji for Pitru Paksha Shraddh
हिन्दूधर्म के अनुसार, प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में माता-पिता, पूर्वजों को नमस्कार या प्रणाम करना हमारा कर्तव्य है. हमारे पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही हम आज यह जीवन देख रहे हैं, इस जीवन का आनंद प्राप्त कर रहे हैं.
इस धर्म मॆं, ऋषियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्घ्य समर्पित करते हैं. यदि किसी कारण से उनकी आत्मा को मुक्ति प्रदान नहीं हुई है तो हम उनकी शांति के लिए विशिष्ट कर्म करते है जिसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं.
श्राद्ध के लिए उचित द्रव्य हैं- तिल, चावल, जौं, जल, मूल, (जड़युक्त सब्जी) और फल और ये बातें प्रशसनीय हैं – सफ़ाई, क्रोधहीनता और चैन (त्वरा शीघ्रता का न होना, अपरान्ह का समय, कुशा, श्राद्धस्थली की स्वच्छ्ता, उदारता से भोजन आदि की व्यवस्था और अच्छे ब्राह्मण की उपस्थिति.
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पिण्ड का अर्थ :-
श्राद्ध-कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके जो पिण्ड बनाते हैं, उसे ‘सपिण्डीकरण’ कहते हैं. पिण्ड का अर्थ है शरीर. यह एक पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढी के भीतर मातृकुल तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढियों के समन्वित ‘गुणसूत्र’ उपस्थित होते हैं. चावल के पिण्ड जो पिता, दादा, परदादा और पितामह के शरीरों का प्रतीक हैं, आपस में मिलकर फिर अलग बाँटते हैं. यह प्रतीकात्मक अनुष्ठान जिन जिन लोगों के गुणसूत्र (जीन्स) श्राद्ध करने वाले की अपनी देह में हैं, उनकी तृप्ति के लिए होता है.
इस पिण्ड को गाय-कौओं को देने से पहले पिण्डदान करने वाला सूँघता भी है. हमारे देश में सूंघना यानी कि आधा भोजन करना माना जाता है. इस प्रकार श्राद्ध करने वाला पिण्डदान से पहले अपने पितरों की उपस्थिति को ख़ुद अपने भीतर भी ग्रहण करता है.
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श्राद्ध का अधिकारी :-
हिन्दू धर्म के मरणोपरांत संस्कारों को पूरा करने के लिए पुत्र का प्रमुख स्थान माना गया है. शास्त्रों में लिखा है कि नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है. इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का अधिकारी माना गया है और नरक से रक्षा करने वाले पुत्र की कामना हर मनुष्य करता है.
इसलिए यहां जानते हैं कि शास्त्रों के अनुसार पुत्र न होने पर कौन-कौन श्राद्ध का अधिकारी हो सकता है -पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए. पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है. पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए.
एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करता है. पुत्री का पति एवं पुत्री का पुत्र भी श्राद्ध के अधिकारी हैं. पुत्र के न होने पर पौत्र या प्रपौत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं. पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के न होने पर विधवा स्त्री श्राद्ध कर सकती है. पत्नी का श्राद्ध तभी कर सकता है, जब कोई पुत्र न हो. पुत्र, पौत्र या पुत्री का पुत्र न होने पर भतीजा भी श्राद्ध कर सकता है. गोद में लिया पुत्र भी श्राद्ध का अधिकारी है. कोई न होने पर राजा को उसके धन से श्राद्ध करने का विधान है.
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श्राद्ध विधि :-
आश्विन कृष्ण पक्ष में जिस दिन पूर्वजों की श्राद्ध तिथि आए उस दिन पितरों की संतुष्टि के लिए श्राद्ध विधि-विधान से करना चाहिए. अगर तिथि ज्ञात न हो तो अमावस्या को या पूर्ण तिथि को श्राद्ध करना उचित होता है. मौनी अमावस्या को भी पितरों के श्राद्ध करने का विधान है.
किंतु अगर आप किसी कारणवश शास्त्रोक्त विधानों से न कर पाएं तो यहां बताई श्राद्ध की सरल विधि को अपनाएं –
सुबह उठकर स्नान कर देव स्थान व पितृ स्थान को गाय के गोबर लिपकर व गंगाजल से पवित्र करें. घर आंगन में रंगोली बनाएं. महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन बनाएं. श्राद्ध का अधिकारी श्रेष्ठ ब्राह्मण (या कुल के अधिकारी जैसे दामाद, भतीजा आदि) को न्यौता देकर बुलाएं. ब्राह्मण से पितरों की पूजा एवं तर्पण आदि कराएं.
पितरों के निमित्त अग्नि में गाय का दूध, दही, घी एवं खीर अर्पित करें. गाय, कुत्ता, कौआ व अतिथि के लिए भोजन से चार ग्रास निकालें. ब्राह्मण को आदरपूर्वक भोजन कराएं, मुखशुद्धि, वस्त्र, दक्षिणा आदि से सम्मान करें. ब्राह्मण स्वस्तिवाचन तथा वैदिक पाठ करें एवं गृहस्थ एवं पितर के प्रति शुभकामनाएं व्यक्त करें.
श्राद्ध किसी दूसरे के घर में दूसरे की भूमि में कभी नही करना चाहिये,जो भूमि सार्वजनिक हो,जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व नही हो,वहां श्राद्ध कर्म किया जा सकता है. शास्त्रीय निर्देशों के अनुसार दूसरों के घर मे श्राद्ध करने पर खुद के पितरों को कुछ नही मिलता है. गृहस्वामी के पितर बलपूर्वक श्राद्ध करने वाले के पितरों से सब कुछ छीन लेते है.
यदि किसी विवशता के कारण ही दूसरे के गृह अथवा भूमि में श्राद्ध करना पडे,तो सर्वप्रथम उस भूमि का किराया अथवा मूल्य उस भूस्वामी को दे देना चाहिये.
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श्राद्ध के प्रकार :-
नित्य- यह श्राद्ध के दिनों में मृतक के निधन की तिथी पर किया जाता है.
नैमित्तिक- किसी विशेष पारिवारिक उत्सव, जैसे-पुत्र जन्म पर मृतक को याद कर किया जाता है.
काम्य- यह श्राद्ध किसी विशेष मनौती के लिए कृतिका या रोहिणी नक्षत्र में किया जाता है.
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श्राद्ध के लिए अनुचित बातें : –
कुछ अन्न और खाद्य पदार्थ जो श्राद्ध में नहीं प्रयुक्त होते- मसूर, राजमा, कोदों, चना, कपित्थ, अलसी, तीसी, सन, बासी भोजन और समुद्रजल से बना नमक. भैंस, हिरिणी, उँटनी, भेड़ और एक खुरवाले पशु का दूध भी वर्जित है. पर भैंस का घी वर्जित नहीं है. श्राद्ध में दूध, दही और घी पितरों के लिए विशेष तुष्टिकारक माने जाते हैं. श्राद्ध किसी दूसरे के घर में, दूसरे की भूमि में कभी नहीं किया जाता है. जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो, सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है.
श्राद्ध पक्ष में अपने दिवंगत पितरों के निमित्त जो व्यक्ति तिल, जौ, अक्षत, कुशा, दूध, शहद व गंगाजल सहित पिण्डदान व तर्पणादि, हवन करने के बाद ब्राह्माणों को यथाशक्ति भोजन, फल-वस्त्र, दक्षिणा, गौ आदि का दान करता है. उसके पितर संतृप्त होकर साधक को दीर्घायु, आरोग्य, स्वास्थ्य, धन, यश, सम्पदा, पुत्र-पुत्री आदि का आशीर्वाद देते हैं. जो व्यक्ति जान-बूझकर श्राद्ध कर्म नहीं करता, वह शापग्रस्त होकर अनेक प्रकार के कष्टों व दु:खों से पीड़ित रहता है. अपने पूर्वज पितरों के प्रति श्रद्धा भावना रखते हुए पितृ यज्ञ व श्राद्ध कर्म करना नितांत आवश्यक है. इससे स्वास्थ्य, समृद्धि, आयु एवं सुख-शांति में वृद्धि होती है.
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श्राद्ध में कुश और तिल का महत्व—
दर्भ या कुश को जल और वनस्पतियों का सार माना जाता है. यह भी मान्यता है कि कुश और तिल दोंनों विष्णु के शरीर से निकले हैं. गरुड़ पुराण के अनुसार, तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु, महेश कुश में क्रमश: जड़, मध्य और अग्रभाग में रहते हैं. कुश का अग्रभाग देवताओं का, मध्य भाग मनुष्यों का और जड़ पितरों का माना जाता है. तिल पितरों को प्रिय हैं और दुष्टात्माओं को दूर भगाने वाले माने जाते हैं. मान्यता है कि बिना तिल बिखेरे श्राद्ध किया जाये तो दुष्टात्मायें हवि को ग्रहण कर लेती हैं.
श्राद्ध के देवता :-
वसु, रुद्र और आदित्य श्राद्ध के देवता माने जाते हैं.
कम ख़र्च में श्राद्ध :-
विष्णु पुराण के अनुसार दरिद्र व्यक्ति केवल मोटा अन्न, जंगली साग-पात-फल और न्यूनतम दक्षिणा, वह भी ना हो तो सात या आठ तिल अंजलि में जल के साथ लेकर ब्राह्मण को देना चाहिए या किसी गाय को दिन भर घास खिला देनी चाहिए अन्यथा हाथ उठाकर दिक्पालों और सूर्य से याचना करनी चाहिए कि हे! प्रभु मैंने हाथ वायु में फैला दिये हैं, मेरे पितर मेरी भक्ति से संतुष्ट हों.
श्राद्ध स्थल :-
विष्णुधर्मसूत्र ने कई पवित्र स्थलों का उल्लेख किया है –’इनमें तीर्थों, बड़ी नदियों, सभी प्राकृतिक बालुका-तटों, झरनों के निकट, पर्वतों, कुंजों, वनों, निकुंजों एवं गोबर से लिपे सुन्दर स्थलों पर श्राद्ध करना चाहिए’.
शंख ने लिखा है कि :- जो भी कुछ पवित्र वस्तु गया, प्रभास, पुष्कर, प्रयाग, नैमिष वन (सरस्वती नदी पर), गंगा, यमुना एवं पयोष्णी पर, अमरकंटक, नर्मदा, काशी, कुरुक्षेत्र, भृगुतुंग, हिमालय, सप्तवेणी, ऋषिकेश में दी जाती है, वह अक्षय होती है.
ब्रह्मपुराण ने भी नदीतीरों, तालाबों, पर्वतशिखरों एवं पुष्कर जैसे पवित्र स्थलों को श्राद्ध के लिए उचित स्थान माना है.
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Some beliefs related to Shraddha-Book Panditji for Pitru Paksha Shraddh
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According to the Hindu religion, it is our duty to greet parents, ancestors or ancestors at the beginning of each auspicious work. Due to the tradition of our ancestors, we are seeing this life today, enjoying this life.
In this religion, the Rishis gave a name to the patriarchal party in the year, in which, we dedicate a special function to the liberation, renunciation, liberation of our paternal devotees and dedicate them to the devotees. If for some reason their soul is not liberated, then we do special deeds for their peace, which is called ‘Shraddha’.
Proper material for Shraddha – Sesame, rice, barley, water, root, root (rooted vegetable) and fruits and these things are admired – cleanliness, indignity and peace (fastness of fastness, time of displeasure, Kusha, the sanctity of Shraddha Generally, arrangement of food etc and the presence of good Brahmin.
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The compounds which make up the body by mixing ripe rice, milk and sesame in the Shraddha-karma are called ‘Sapradidaran’. Body means body. It is a traditional belief, which science also believes that within each generation, the ‘chromosome’ coordinates of previous generations in both Matriculation and Pitrukul are present. The body of rice which is the symbol of the body of the father, grandfather, great-grandfather, and grandmother, together with each other, divide them together. This symbolic ritual is for those whose chromosomes (jeans) are in the body of the Shraddha, in their body.
Even before giving this body to cow-cattle, there is also sniffing. Snoring in our country, that is half the food is considered. In this way, the Shraddha takes the presence of his ancestors himself even before entering Pundan.
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Officer of Shraddha: –
To fulfill the posthumous chanting of Hindu religion, son is considered to be the prime seat of the son. It is written in scriptures that liberation from hell only gets by son. Therefore, the son is considered as an officer of Shraddha, Pendant and every human being desires the son who protects him from hell.
Therefore, here it is known that according to the scriptures, who can be the authority of Shraddha if the son does not have a son – the son of his son should do the same. If the son does not have a son, then Shraddha can do. In spite of not having a wife, a brother should be embalmed and due to lack of it, the property should be embalmed.
Shraddha is the eldest son when having more than one son. The daughter’s husband and daughter’s son also belong to Shraddha. Even if the son does not have a son, the grandson or grandfather can also make Shraddha. If a son, grandson or grandfather does not exist then a widow can make a woman. Only the wife can do the Shraddha if there is no son. Even if the son, son or daughter does not have a son, the nephew can also make Shraddha. The son who is in the lap also belongs to Shraddha. If there is no one, it is the law of the king to make Shraddha with his wealth.
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Shraddha Method: –
In the Ashwin Krishna side, on the date of the ancestors’ date of Shraddha, the Shraddha should be done with law and order for the satisfaction of the ancestors. If the date is not known then it is appropriate to revive the new moon or the full date. Mauni Amavasya is also the law of the ancestors of Shraddha.
But if you can not do any scientific reason for some reason, then follow the simple method of Shraddha here.
Bathe in the morning and after bathing, place the place and father’s place in the cow’s dung and make it sacred by Ganga Jal. Make Rangoli in the home courtyard. Women become pure and prepare meals for the ancestors. Invite Shraddha, the superior Brahmin (or a total of the officials like son-in-law, nephew etc.). Pooja and Tarpan etc. should be done from Brahmins.
Offer cow’s milk, curd, ghee and kheer in the fire for the sake of ancestors. Take out four grams of food for the cow, dog, crow, and guest. Respect the Brahmin with respect, food, face, clothing, Dakshina etc. Brahmins recite Swasti Vachan and Vedic recitation and convey greetings to the householder and father.
Shraddha should never be done in another’s house in another’s house, which can be done in the land where there is no public land, which is not owned by anyone. According to the classical instructions, none of their ancestors gets anything to be embalmed in the house of others. The ancestors of the householder take away everything from the ancestors of the Shraddha.
If a person is forced to perform Shradha in the house or land of another because of a compulsion, then, first of all, the rent or value of that land should be given to that landowner.
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Types of Shraddha: –
Routine- This is done on the date of demise of the deceased in the days of Shraddha.
Naimittik- A special family celebration, such as a son is born on the remembrance of the deceased.
Kamya – This Shraadh is performed in a Kritika or Rohini Nakshatra for a special arrangement.
Inappropriate things for Shraddha: – Some grains and foods which are not used in Shraddha – Masur, Rajma, Kodon, Chana, Kapithth, Linseed, Tissi, Sun, Stale food and salt made from seawater Milk of buffalo, diamond, camel, sheep and a hoarse animal are also taboo. But the ghee of buffalo is not taboo. In Shraddha, milk, curd and ghee are considered to be very appealing for the ancestors. Shraadh is never done in another’s house, in another’s land. Shraddha can be done on such land which is not owned by anyone, it is public.
For the sake of his late Fathers in the Shraddha party, after donating pearls and green pots along with sesame seeds, barley, acacia, kusha, milk, honey, and Ganga Jal, donate to the Brahmins as food, fruit-clothes, Dakshina, cow etc. His ancestors get saturated and bless the seeker with longevity, health, health, wealth, success, wealth, son and daughter. The person who does not intentionally perform Shraddha works, he is cursed and suffers from many kinds of sorrows and sorrows.It is absolutely essential to do paternal yajna and shraddha karmas while keeping reverence for your ancestors. This leads to an increase in health, prosperity, age, and happiness.
Importance of Kush and Sesame in Shraddha- Darbhusha or Kush is considered the essence of water and vegetation. It is also believed that Kush and Sesame have come out of the body of Vishnu. According to Garuda Purana, the three Gods Brahma, Vishnu, Mahesh live in Kush, in the root, middle and forehead respectively. The front of the cush is considered to be of the gods, the central part of human beings and root ancestors. Mole is dear to the ancestors and the demons are considered to be a distractor. It is believed that if the salsa is done without any sill, then the demons take it.
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God of Shraddha: –
Vaasu, Rudra and Aditya are believed to be the gods of Shraddha.
Shraddha in low cost: –
According to Vishnu Purana, the poor person should feed only the cow, the wild greens and the minimum Dakshina, if not, with seven or eight til water in Anjali, Brahmin should be given or any cow should feed the grass throughout the day otherwise He should lift his hand and cry with sunshine and sun! Lord, I have spread my hands in the air, my ancestors are satisfied with my devotion.
Shraddha Venkates: –
Vishnudhrsam Sutra has mentioned many holy places- ‘Shraddha on these beautiful shrines, big rivers, all natural sandal-beaches, near waterfalls, mountains, beaches, forests, Nicos, and dungs are beautiful places.
Shankha has written that: – Whatever holy thing went on, Prabhas, Pushkar, Prayag, Naimish One (on the Saraswati river), Ganga, Yamuna and Piyon, Amarkantak, Narmada, Kashi, Kurukshetra, Bhrigutung, Himalaya, Saptaveen, Rishikesh Is given in, it is renewable.
Brahmapuraan also considered holy places like river banks, ponds, mountain ranges, and Pushkar to be a proper place for Shraddha.
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