जाने पृथ्वी के अनेक नामो का क्या रहस्य हैं? – Panditji in Delhi

Panditji in Delhi – जाने पृथ्वी के अनेक नामो का क्या रहस्य हैं?

पूर्वकाल में महापराक्रमी , राक्षस हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को ब्रह्मांड से चुराकर रसातल में ले जाकर रख दिया था तथा उसकी रखवाली करने लगा । ब्रह्मांड में से पृथ्वी के गायब हो जाने से चारो ओर हाहाकार मच गई। एक दिन ब्रह्माजी को बहुत जोर की छीक आयी जिससे उनकी नाक से एक अनोखा जीव बाहर निकाला ।उस जीव ने क्षण भर में विशाल रूप धारण कर लिया। चार भुजा वाला वह जीव वाराह सुअर की तरह था। 

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उसकी घुरघुराहट की ध्वनि से ब्रह्मांड भर गया। वह वाराह हाथ मे गदा लिये हुए अथाह जल में कूद पड़ा और वह उस स्थान पर पहुंच गया जहाँ हिरण्याक्ष पृथ्वी को रखकर सो रहा था। वाराह ने भयानक गर्जन की और पृथ्वी को अपनी दाढ़ी पर ऐसे उठा लिया जैसे कमल का फूल हो।उसी समय हिरण्याक्ष जाग गया और वाराह से युद्ध करने लगा। वाराह ने अपनी गदा के एक ही प्रहार से उसे मार डाला और पृथ्वी को अपनी दाड़ो पर रखकर जल से बाहर निकल आया।

वह वाराह भगवान कहलाय तथा पृथ्वी को दाड़ो पर धारण करने के कारण पृथ्वी का एक नाम धरणी पड़ गया। पृथ्वी का दूसरा नाम मेदिनी हैं। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री हरि शेष शय्या पर शयन कर रहे थे।उनके कान के मैल से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षस उत्पन्न हुए और श्री हरी के नाभि से निकले कमल के फूल पर स्थित ब्रह्मा जी को खाने के लिये दौड़े। ब्रह्मा जी डर कर श्री हरि की शरण मे गए। ब्रह्मा जी की रक्षा के लिए श्री हरि उन दोनों राक्षसों मधु और कैटभ से युद्ध करने लगे। यह युद्ध पाँच हजार वर्षों तक चलता रहा परन्तु वे उन्हें न मार सके। इस पर श्री हरि ने जनसे कहा – हे महाबली दानवों। मैं तुम्हारी वीरता से प्रसन्न हूँ। अतः अपनी इच्छानुसार तुम कोई भी वरदान मांग सकते हो ।

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तब उन अहंकारी दानवों ने कहा – जो बलवान होता हैं, वरदान देने का अधिकार भी उसे ही होता हैं।तुम जो मांगना चाहते हो मांग सकते हों। भगवान श्रीहरि ने उन दानवों को अपनी माया से मोहित कर दिया था, इसी कारण दानवो की भ्रस्ट हो गयी थी।तब श्रीहरि ने कहा – ठीक है। यदि तुम दोनों वर देना चाहते हो तो मेरे हाथों से तुम अपनी मृत्यु स्वीकार करो। वे दानव वचन दे चुके थे।

अतः अपनी मृत्यु स्वीकार करते हुए बोले- हे विष्णु । तुमने भी हमे वर देने को कहा है- हम यह वर चाहते हैं- कि तुम हमे उस स्थान पर मारो जहां जल न हो। अथार्त सूखे स्थान पर मारो। श्रीहरि ने वैसा ही किया। उस समय चारो ओर जल ही जल था। श्रीहरि ने अपनी विशाल जांघो को सदा लिया और उसी पर दोनों को लिटाकर अपने चक्र से उनके सिर काट डाले। उन दोनों दैत्यों मधु कैटभ का रक्त , मज्जा, मास आदि जल पर चारो ओर फैल गया।उसी मेद से श्रीहरि ने पृथ्वी की रचना की। मेद से पृथ्वी को रचने के कारण पृथ्वी का एक नाम मेदनी पड़ा।

धरती को समतल करके पृथु ने अन्न उपजाने के योग्य बनाया जिस वजह से धरती को पृथ्वी कहा गया। तीन लोको में एक लोक को भू- लोक कहते हैं। भू- लोक नाम से इसका नाम भूमि पड़ा।

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